हर्दये के तारो को,
एक दूजे पे पिरोती,
परिणय की छवि,
आपकी आराधीनता स्वीकार है।
आज भी स्वाधीनता को त्याग कर ,
प्रेम उपासना जीवन भर करने को तैयार है ।
अस्तित्व में अस्तित्व को,
सयुक्त करो या नकार दो ,
प्रेम में आपका सब अधिकार है।
हर दिशा में हर नजर में,
सभी भाषाओ में लिखा,
पर परिभाषा से मुक्त
प्रेम तो हर कही विद्यमान है ।
आज भी स्वाधीनता को त्याग कर ,
प्रेम उपासना जीवन भर करने को तैयार है ।